खुद
को इंसान कह के इंसानियत को शर्मसार मत करो - अतुल मलिकराम
रविवार
का दिन था, मै शाम को सैर पर निकल हुआ था, इसी बीच मेरी नजर एक बुर्जुग
दंपत्ति पर गई, जो कि बड़ी देर से सड़क पार करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन एक कदम बढ़ाने
के बाद फिर वो दो कदम पीछे चले जाते क्योंकि कोई भी गाड़ी रूकने का नाम ही नही ले रही
थी। केवल यही नही बल्कि उस बुर्जुग को देखते साथ
गाड़ियां अपनी रफ़्तार और तेज कर लेती, ताकि
कहीं उनके धीमी रफ्तार को वो दंपत्ति सड़क पार करने का सिग्नल न मान लें। मै
हैरान था, उन तमाम वाहनों को देखकर मै समझ नही पा रहा था, कि आखिर इन वाहनों में सवार
लोग किस 'महत्वपूर्ण मंजिल' पर पहुंचना चाहते हैं कि एक बुजुर्ग को रास्ता देने के
लिए उनके पास एक मिनट का वक़्त नहीं। खैर, काफी
देर से परेशान हो रहे उस दंपत्ति को मदद मिल गई और उन्होने रोड पार कर ली।
लेकिन
ये केवल उस दम्पति की ही बात नहीं थी, अक्सर हम विभिन्न जगहों पर लोगो को परेशान होते
देखते हैं] लेकिन मदद का हाथ बढ़ने की बजाय हम उनसे कन्नी काटने में लगे रहते हैं, ये
कहकर कि 'क्यूं पड़ना किसी दूसरे के पचड़े में, अपनी परेशानी कम है क्या।'
यही
वजह है कि सफर के दौरान हम किसी को घंटो खड़े देखने के बावजूद भी उसे खाली सीट नहीं
देते बल्कि ये भी सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी तरह वो हमारी सीट पर न बैठ पाए। इसी
तरह, अगर कोई बुर्जुग व्यक्ति या फिर गर्भवती महिला को ट्रेन के अपर बर्थ पर चढ़ने में
परेशानी होती है और वो हमसे लोवर बर्थ के लिए आग्रह करते है तो उसमें भी कई ये कहकर
इंकार कर देते हैं कि जब परेशानी थी तो टिकट क्यूं ली। घिन आती है ऐसी मानसिकता वाले
लोगो से मुझे।
हम
इंसान कहलाने के लायक नही हैं, क्योंकि इंसानों में इंसानियत का गुण होता, जो कि हममें
नही है। जिस दिन आप में इंसानियत का गुण आ जायें, उस दिन खुद को इंसान कहियेगा, अभी
इस शब्द को शर्मसार मत कीजिये, और खुद से भी झूठ बोलना बंद कर दीजिए।
हम
इंसान तभी बन सकेंगे जब हम संवेदनशील हों, किसी और की तकलीफ हमारी चिंता का विषय बन
सके, अगर कोई मदद के आस लिए खड़ा है तो हम अपना हाथ उसकी और बढ़ाये। मै ऐसे राष्ट्र की
कल्पना करता हूं, जहां हर व्यक्ति के मन में दया, करूणा और परोपकार की भावना हो, किसी
एक की मदद के लिए हजारो हाथ एक साथ उठें। जहां फिर किसी बुजुर्ग, गर्भवती महिला, विकलांग,
या फिर लाचार को लंबी कतार में ना लगना पड़े बल्कि ऐसे किसी को देखते साथ ही वो पूरी
कतार खाली हों जाए।