मैं तुझे चला दूंगा' इन शब्दों ने बदल दी विपिन जैन की जिंदगी



मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। अगर यूं कहें कि गुजरात के दाहोद जिले के लिमड़ी नामक एक छोटे से गाँव में 18 दिसंबर 1975 को जन्में विपिन जैन ने, इन पंक्तियों को सही साबित किया है तो गलत नहीं होगा। विपिन महज 8 माह की आयु में ही, शरीर के दोनों तरफ निचले अंगों को प्रभावित करने वाले पोलियोमाइलाइटिस का शिकार हो गए थे। इतनी कम उम्र में हुए पोलियों के हमले से वह अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं हो सके। शायद आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन उनके दोनों घुटनों को 90 डिग्री से भी अधिक संकुचित किया गया, लेकिन फिर भी वह अपने पैरों को सीधा करने में असमर्थ रहे। वह 18 वर्ष 8 महीने की आयु तक जमीन पर रेंगने या ट्रायसिकल का इस्तेमाल करने पर मजबूर रहे। लेकिन कहते हैं , जहां चाह होती है, वहीं राह होती है। विपिन में भी कभी अपने पैरों पर चलने की चाह नहीं छोड़ी और साल 1994 में उनकी चाह को राह मिलते हुए दिखाई दी।
विपिन जैन ने पहली बार 8 जुलाई 1994 को इंदौर के मेडिकेयर क्लिनिक में डॉ बंगानी से मुलाकात की। हालांकि ये मुलाक़ात भी आसान नहीं थी। मेडिकेयर में 3-4 घंटे इंतजार के बाद उन्हें डॉ बंगानी से मिलने का मौका मिला। यहां एक ख़ास बात ये भी रही कि रोजाना सैकड़ो मरीजों से मिलने वाले डॉ बंगानी ने, विपिन की गंभीरता को समझते हुए क्लिनिक का समय ख़त्म होने के बावजूद उनकी जांच करने में दिलचस्पी दिखाई। विपिन इस बात का जिक्र करते हुए थोड़ा भावुक हो जाते हैं। वह बताते हैं कि सभी की सोच से विपरीत, डॉ बंगानी ने उनके पैरों को हाथ लगाए बिना ही, पूरे विश्वास के साथ बस एक ही लाइन कही, वो थी, "मैं तुझे चला दूंगा" अब इसे डॉ बंगानी का आत्मविश्वास कहिए या विपिन का अपने डॉ पर भरोसा, डॉ के इन जादुई शब्दों ने जल्द ही विपिन की जिंदगी बदल दी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 14000 फीट की ऊंचाई से स्काई डाइविंग कर, सुरक्षित जमीन पर लैंड करते हुए, विपिन ने ये साबित कर दिया कि उड़ान के लिए पंखों की नहीं हौसलों की जरुरत होती है।

1994
से लेकर 2013 तक विपिन करीब 8 प्रकार की अलग अलग सर्जरी से गुजरे। हालांकि इस दौरान उनकी पढ़ाई को जारी रखना भी एक चैलेन्ज था लेकिन उन्होंने इसे भी स्वीकार किया, और अपनी पढ़ाई को बाधित किए बिना, एक मिसाल के तौर पर 2002 में चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में योग्यता प्राप्त की। आपको जानकार ख़ुशी हैरानी दोनों होगी कि विपिन आज एक स्वतंत्र ग्लोबल ट्रैवलर हैं, जो M\s. मनोज विपिन & को. नामक एक चार्टेड एकाउंटेंसी फर्म के को-फाउंडर भी हैं। उनकी इस कंपनी में देश के तमाम शहरों से 50 से अधिक लोगों की एक मजबूत टीम काम करती है, जिसमें कुल 15 सीए भी शामिल हैं। इसके अलावा वह यूएसए बेस्ड पार्टनर के साथ कुछ एनआरआई क्लाइंट्स देश-विदेश के कई हिस्सों में काम, यात्रा या अन्य कई गतिविधियों का हिस्सा बनने से वह आज पूरी तरह एक आत्म निर्भर व्यक्ति बन गए हैं। विपिन की ये कहानी हममें से तमाम लोगों के लिए एक प्रेरणा का श्रोत है। साथ ही इससे हमें अपनी इच्छा शक्ति और सामने वाले पर विश्वास करने से मिले फल का भी एक बेहतरीन उदाहरण देखने को मिलता है।  
मैं तुझे चला दूंगा' इन शब्दों ने बदल दी विपिन जैन की जिंदगी


मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। अगर यूं कहें कि गुजरात के दाहोद जिले के लिमड़ी नामक एक छोटे से गाँव में 18 दिसंबर 1975 को जन्में विपिन जैन ने, इन पंक्तियों को सही साबित किया है तो गलत नहीं होगा। विपिन महज 8 माह की आयु में ही, शरीर के दोनों तरफ निचले अंगों को प्रभावित करने वाले पोलियोमाइलाइटिस का शिकार हो गए थे। इतनी कम उम्र में हुए पोलियों के हमले से वह अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं हो सके। शायद आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन उनके दोनों घुटनों को 90 डिग्री से भी अधिक संकुचित किया गया, लेकिन फिर भी वह अपने पैरों को सीधा करने में असमर्थ रहे। वह 18 वर्ष 8 महीने की आयु तक जमीन पर रेंगने या ट्रायसिकल का इस्तेमाल करने पर मजबूर रहे। लेकिन कहते हैं , जहां चाह होती है, वहीं राह होती है। विपिन में भी कभी अपने पैरों पर चलने की चाह नहीं छोड़ी और साल 1994 में उनकी चाह को राह मिलते हुए दिखाई दी।
विपिन जैन ने पहली बार 8 जुलाई 1994 को इंदौर के मेडिकेयर क्लिनिक में डॉ बंगानी से मुलाकात की। हालांकि ये मुलाक़ात भी आसान नहीं थी। मेडिकेयर में 3-4 घंटे इंतजार के बाद उन्हें डॉ बंगानी से मिलने का मौका मिला। यहां एक ख़ास बात ये भी रही कि रोजाना सैकड़ो मरीजों से मिलने वाले डॉ बंगानी ने, विपिन की गंभीरता को समझते हुए क्लिनिक का समय ख़त्म होने के बावजूद उनकी जांच करने में दिलचस्पी दिखाई। विपिन इस बात का जिक्र करते हुए थोड़ा भावुक हो जाते हैं। वह बताते हैं कि सभी की सोच से विपरीत, डॉ बंगानी ने उनके पैरों को हाथ लगाए बिना ही, पूरे विश्वास के साथ बस एक ही लाइन कही, वो थी, "मैं तुझे चला दूंगा" अब इसे डॉ बंगानी का आत्मविश्वास कहिए या विपिन का अपने डॉ पर भरोसा, डॉ के इन जादुई शब्दों ने जल्द ही विपिन की जिंदगी बदल दी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 14000 फीट की ऊंचाई से स्काई डाइविंग कर, सुरक्षित जमीन पर लैंड करते हुए, विपिन ने ये साबित कर दिया कि उड़ान के लिए पंखों की नहीं हौसलों की जरुरत होती है।

1994
से लेकर 2013 तक विपिन करीब 8 प्रकार की अलग अलग सर्जरी से गुजरे। हालांकि इस दौरान उनकी पढ़ाई को जारी रखना भी एक चैलेन्ज था लेकिन उन्होंने इसे भी स्वीकार किया, और अपनी पढ़ाई को बाधित किए बिना, एक मिसाल के तौर पर 2002 में चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में योग्यता प्राप्त की। आपको जानकार ख़ुशी हैरानी दोनों होगी कि विपिन आज एक स्वतंत्र ग्लोबल ट्रैवलर हैं, जो M\s. मनोज विपिन & को. नामक एक चार्टेड एकाउंटेंसी फर्म के को-फाउंडर भी हैं। उनकी इस कंपनी में देश के तमाम शहरों से 50 से अधिक लोगों की एक मजबूत टीम काम करती है, जिसमें कुल 15 सीए भी शामिल हैं। इसके अलावा वह यूएसए बेस्ड पार्टनर के साथ कुछ एनआरआई क्लाइंट्स देश-विदेश के कई हिस्सों में काम, यात्रा या अन्य कई गतिविधियों का हिस्सा बनने से वह आज पूरी तरह एक आत्म निर्भर व्यक्ति बन गए हैं। विपिन की ये कहानी हममें से तमाम लोगों के लिए एक प्रेरणा का श्रोत है। साथ ही इससे हमें अपनी इच्छा शक्ति और सामने वाले पर विश्वास करने से मिले फल का भी एक बेहतरीन उदाहरण देखने को मिलता है।  
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